Allama Iqbal Shayari reflects the profound thoughts and emotions of one of the greatest poets of the Urdu language, who played a pivotal role in inspiring a sense of identity and nationalism among his people.
As one of the foremost thinkers of the 20th century, Allama Iqbal best shayari continues to inspire millions through its evocative imagery and powerful messages.
This article presents a curated collection of his most significant Shayari, allowing readers to explore the layers of meaning behind his eloquent words.
Allama Iqbal Shayari
Iqbal’s verses often delve into themes of self-discovery, identity, and spiritual awakening, reflecting his deep engagement with the socio-political landscape of his time.
His Shayari resonates with the struggles and aspirations of individuals, urging them to rise above mediocrity and embrace their true potential.
दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं
ज़ख्म इतने मिले फिर सिले भी नहीं
व्यर्थ किस्मत पे रोने से क्या फायदा
सोच लेना कि हम तुम मिले भी नहीं।
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के “इम्तिहाँ” और भी हैं
तही ”ज़िंदगी” से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं.!
जो किए ही नहीं कभी मैंने,
वो भी वादे निभा रहा हूँ मैं.
मुझसे फिर बात कर रही है वो,
फिर से बातों मे आ रहा हूँ मैं !
“कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम
बिन. भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम
बिन ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने कभी
तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन.”
तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँ
मिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ ।
जानते हो तुम भी फिर भी ”अजनान” बनते हो
इस तरह हमें “परेशान” करते हो.
पूछते हो तुम्हे किया पसंद है
जवाब खुद हो फिर भी “सवाल” करते हो..
जलाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
तड़प जा पेच खा खा कर बदल जा
नहीं साहिल तिरी किस्मत में ऐ मौज
उभर कर जिस तरफ चाहे निकल जा.. ।
तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ , सज़ा चाहता हूँ..!
ये कफन, ये क़ब्र, ये जनाज़े रस्म ए
शरीयत है इकबाल मार तो इंसान तब
ही जाता है जब याद करने वाला कोई
ना हो..!
मुझ सा कोई शख्स नादान भी न हो.
करे जो इश्क़ कहता है नुकसान भी न हो.
चिंगारी आजादी की ‘सुलगती’ मेरे जश्न में है।
इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में है।
मौत जहां जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है।
कुर्बानी का जज्बा “जिंदा” मेरे कफन में है।
तिरे इश्क़ की “इंतिहा ” चाहता हूँ
मिरी “सादगी” देख क्या चाहता हूँ
ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ.!
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अल्लामा इकबाल की गजल
अल्लामा इकबाल की गजलें न केवल उनके साहित्यिक कौशल का परिचायक हैं, बल्कि वे उनके गहरे विचारों और मानवता के प्रति उनकी संवेदनशीलता को भी उजागर करती हैं।.
उनकी गज़लों में प्रेम, आत्मबोध, और सामाजिक न्याय जैसे विषयों का समावेश है, जो पाठकों को गहराई से प्रभावित करते हैं। इकबाल की रचनाएँ अक्सर आत्म-खोज और राष्ट्रीय पहचान के मुद्दों को छूती हैं, जिससे वे न केवल अपने समय के लिए प्रासंगिक हैं, बल्कि आज भी विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं।.
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकां हूँ,
जहां में हूँ कि खुद सारा जहां हूँ,
वो अपनी ला-मकानी में रहे मस्त,
मुझे इतना बता दें मैं कहां हूँ.
तिरे सीने में दम है दिल नहीं है,
तिरा दम गर्मी-ए-महफ़िल नहीं है,
गुज़र जा अक़्ल से आगे ये नूर,
चराग-ए-राह है मंज़िल नहीं है!
सौ सौ उमीदें बँधती है इक इक निगाह पर
मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई.!
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा..!
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है,
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है!
Motivation Allama Iqbal Shayari in Hindi
Iqbal’s poetry encapsulates timeless themes of self-reliance and resilience, making it particularly relevant in today’s fast-paced world where motivation can often wane.
By engaging with his Shayari, one can find encouragement not just to dream but also to act, fostering a mindset geared toward achieving personal and collective goals.
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैं ने बना कर फूँक डाले हैं
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में
वो निकले मेरे ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-दिल के मकीनों में
अक़्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है
इश्क़ बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला न हकीम
ये काएनात अभी ना-तमाम है शायद
कि आ रही है दमादम सदा-ए-कुन-फ़यकूँ
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
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Conclusion
Allama Iqbal Shayari offers a profound glimpse into the philosophical and emotional depths of one of South Asia’s most revered poets. His verses resonate with themes of self-discovery, nationalism, and the human spirit’s quest for freedom.
Through his eloquent expressions, Iqbal not only inspired generations but also laid the foundation for a cultural renaissance. The beauty of his Shayari lies in its ability to connect with readers on multiple levels, evoking feelings of hope and motivation.